बहने दे मुझे दरिया में रोकने को आतुर है जहां
डूबेंगे वो तो क्या कोई होगा यहाँ
लहलहाती खून की लाली जब बदन से लिपटती है
इस लाली को पोंछने लोग है कहां
मरते दम तक मेरा खून लाल ही है
पूछो इस जहाँ से ये तुम्हारा ढाल ही है
दरिया से मिला जब लिपटा मैं कफ़न से
तो सबसे पहले माँ ने पुकारा मन से
वतन के नाम बहा दिया सारा रंग
मिटने के बाद जग ने भुला दी ये जंग
No comments:
Post a Comment